जांजगीर-चांपा जिला छत्तीसगढ़ का वह इलाका है, जो खनिज संपदा से भरपूर माना जाता है। यहां की धरती मिट्टी, रेत और अन्य खनिजों से समृद्ध है, जो जिले के विकास और रोजगार का एक प्रमुख स्रोत हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से खनिज विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। क्षेत्र के लोग अब पूछ रहे हैं — “आखिर कौन है वह खनिज विभाग का चाणक्य, जो पूरे सिस्टम को अपने इशारों पर नचाकर जिले की खनिज संपदा का बंटाधार कर रहा है?”
जिले में रेत खदानों के संचालन से लेकर परिवहन परमिट तक, सबकुछ “प्रभावशाली लॉबी” के कब्जे में बताया जाता रहा है। सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत से खनिज की अवैध निकासी और परिवहन धड़ल्ले से जारी है। प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई के नाम पर केवल औपचारिकता निभाई जाती है, जबकि असली गड़बड़ी को अनदेखा कर दिया जाता है। यही कारण है कि सरकारी खजाने में करोड़ों की हानि हो रही है, और जनता को सिर्फ गड्ढे और धूल भरी सड़कें मिल रही हैं।
कई ग्राम पंचायतों और स्थानीय प्रतिनिधियों ने बार-बार इस अव्यवस्था की शिकायत की है
सूत्र बताते हैं कि यह पूरा नेटवर्क किसी एक “रणनीतिक दिमाग” से संचालित होता है — वही व्यक्ति जिसे स्थानीय लोग मज़ाक में “खनिज विभाग का चाणक्य” कहते हैं। यह चाणक्य नियमों की आड़ में अपने मनमुताबिक खेल खेलता है उसके इशारे पर ही तय होता है कि किस खदान से कितना निकलेगा, कौन ठेकेदार फलेगा और कौन बाहर होगा।
स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी इस मामले को और संदिग्ध बनाती है। यदि वास्तव में शासन-प्रशासन जनता की भलाई चाहता है, तो अब वक्त आ गया है कि इस पूरे नेटवर्क की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए। जिले की खनिज संपदा जनता की है, न कि कुछ चुनिंदा लोगों की निजी कमाई का साधन।
जांजगीर-चांपा जैसे संभावनाओं से भरे जिले को बचाने के लिए जरूरी है कि खनिज विभाग की व्यवस्था को पारदर्शी बनाया जाए, भ्रष्ट तंत्र पर सख्त कार्रवाई हो और स्थानीय युवाओं को वैध रोजगार के अवसर मिलें। वरना यह “खनिज चाणक्य” जिले की धरती को खोखला कर, आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी दांव पर लगा देगा। कौन है वो चाणक्य जाने के लिए पढ़ते रहिए आज की जनधारा अखबार संवाददाता राजू साहू के साथ





